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समझ पर अमल करो तो कोई बात बने,
समझ को और बढ़ाने की जरूरत क्या है।01।
काम से काम रखो तो कोई काम बने,
उपाय तमाम लगाने की जरूरत क्या है।02।
जो हो सकता हो, परेशान, कोई, कलम से तेरे,
फिर, तलवार पर-शान चढ़ाने की जरूरत क्या है।03।
जो हो सकता है काम, तेरी आंखों की जुंबिस से,
खाम खा, होठ हिलाने की जरूरत क्या है।04।
गर मिला सको तो दिल ही को मिला कर देखो,
यूं तकल्लुफ़ी से हाथ मिलाने की जरूरत क्या है।05।
चलो ढूंढ़ लें खुद ही में खुद को कभी,
ये अाईना देखने दिखाने की जरूरत क्या है।06।
तू जानती है, मैं नहीं सुधरूंगा, ऐ जिंदगी।
फिर मुझे और सिखाने की जरूरत क्या है।07।
जो मिल सकता है तजुर्बा, बुजुर्गों से।
फिर धूप में बाल पकाने की जरूरत क्या है ।08।
हो सके तो जला आग दबी चिंगारी से।
बुझे को और बुझाने की जरूरत क्या है।09।
जो ना समझा हो जिन्दगी की बाज़ीगरी।
उसपे हर दाव आजमाने की जरूरत क्या है।10।
एक अदद इल्ज़ाम ही बहुत है, गर्क होने को।
फिर किसी और बहाने की जरूरत क्या है।11।
तू पानी, हवा, आग, पत्थर भी बन जहां जैसी जरूरत है।
अगर इंसान हो, इंसानियत बदलने की जरूरत क्या है।12।
कुछ, जो कर न सको, तो मांग लो दुआ ही।
बेवजह एहसान जताने की जरूरत क्या है।13।
वो जो सुनता नहीं तेरी आवाजें।
उसी को हर बार बुलाने की जरूरत क्या है।14।
हो जो अनचाहा सा,
अपना हो कर भी बेगाना सा।
ऐसे रिश्तों को,
ताउम्र निभाने की जरूरत क्या है।15।
हो सके तो इलाज कर घावों का।
कुरेद कर मरहम लगाने की जरूरत क्या है।16।
दूध, नमक और खून का, सूद भरना, किश्तों में।
ऐसे कर्जों को चुकाने की जरूरत क्या है।17।
गम का किस्सा ही बहुत है, रात स्याह करने को।
फिर ये चराग बुझाने की जरूरत क्या है।18।
घर ही को जला कर, जो खुद रोशन हो।
ऐसे दियों को, जलाने की जरूरत क्या है।19।
तू जो साथ है मेरे, हर सफर में, यही बहुत है।
अब किसी और ठिकाने की जरूरत क्या है।20।
तेरी अस्मत पर ही, जो आंच, आ जाए।
ऐसी अज़्मत पर सर झुकाने की जरूरत क्या है।21।